पहले देश से निकाला, फिर संसद में बिठाया और अब सिखों के लिए लड़ाई… कनाडा में खालिस्तान का अड्डा बनने की A से Z तक पूरी कहानी
खालिस्तान की आवाज़ भारत में गूंजती है या फिर कनाडा में। असल में खालिस्तान एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जो भारत से जुड़ा है, लेकिन इसकी लड़ाई अब कनाडा में लड़ी जा रही है। हाल ही में भारत-कनाडा के रिश्तों में खालिस्तान की वजह से तनाव उत्पन्न हुआ है। तो आखिरकार इस खालिस्तान का इतिहास क्या है और यह कनाडा कैसे पहुंचा? आइए, विस्तार से जानते हैं।
सिखों का कनाडा में आगमन
1897 में क्वीन विक्टोरिया की डायमंड जुबली के समय सिख कनाडा पहुंचे। भारतीय सिपाहियों के साथ आए रिसालदार मेजर केसर सिंह को कनाडा में सिख समुदाय का पहला व्यक्ति माना जाता है। 1900 में लगभग 5,000 सिख काम की तलाश में कनाडा आए, लेकिन स्थानीय नागरिकों के विरोध के कारण उन्हें रोजगार प्राप्त करने में कठिनाई हुई। इसके चलते 1906 में भारतीय सिखों के कनाडा आने का सिलसिला काफी धीमा हो गया।
1914 में कोमागाटा मारू नामक जहाज पर 376 भारतीयों ने कनाडा जाने का प्रयास किया, लेकिन उन्हें वहां उतरने नहीं दिया गया। इसके बाद स्थिति में कुछ बदलाव आया, खासकर द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जब कनाडा ने श्रमिकों के लिए दरवाजे खोल दिए।
खालिस्तान आंदोलन का प्रारंभ
1971 में, जगजीत सिंह चौहान ने एक विज्ञापन प्रकाशित किया जिसमें खालिस्तान को एक अलग देश के रूप में मान्यता देने की बात कही गई। इससे खालिस्तान आंदोलन को एक अंतरराष्ट्रीय मंच मिला। इसके बाद, अकाली दल और कनाडा में बसे सिखों के बीच संबंध मजबूत हुए। 1980 के दशक में, इंदिरा गांधी के नेतृत्व में खालिस्तानी आंदोलन को कुचलने के प्रयास किए गए, जिससे कई खालिस्तानी कनाडा में आकर बस गए।
1985 में एयर इंडिया की फ्लाइट 182 में बम विस्फोट कर 329 लोगों की हत्या की गई, जो खालिस्तानी आतंकवाद का एक बड़ा उदाहरण था। इसके बाद, खालिस्तानी संगठनों ने कनाडा में और भी अधिक प्रभाव स्थापित किया।
कनाडा में खालिस्तान का समर्थन
कनाडा में सिख समुदाय अब एक महत्वपूर्ण वोट बैंक बन चुका है। कनाडा के नेताओं ने इस समुदाय को खुश करने के लिए खालिस्तान के समर्थन में बयान दिए हैं। इसके परिणामस्वरूप, खालिस्तानियों को राजनीतिक शरण और समर्थन प्राप्त हुआ है।
जस्टिन ट्रूडो के प्रधानमंत्री बनने के बाद, उन्होंने अपनी कैबिनेट में अधिक सिख मंत्रियों को शामिल किया, जिससे खालिस्तान के मुद्दे पर कनाडा में और भी समर्थन मिला। यही वजह है कि खालिस्तान अब कनाडा का एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन चुका है और इसका प्रभाव भारत-कनाडा के रिश्तों पर पड़ रहा है।